मंगलवार, 22 सितंबर 2009

उपसंहार

मैंने इस ग्रंथ में यह बताया है कि चेहरे के अनुसार व्यक्ति का व्यवसाय अथवा नौकरी क्या होनी चाहिए । मन ही व्यक्ति को कुछ करने के लिए प्रेरित करता है । प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक एवं मानसिक शक्ति कम - ज्यादा होती है । व्यवसाय अथवा नौकरी करने के लिए शारीरिक एवं मानसिक समर्थन होना जरूरी है । प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति अलग अलग होती है । प्रत्येक चेहरे के आकार प्रकार व व्यवसाय व नौकरी में लगने वाले गुण अलग अलग होते हैं । प्रत्येक व्यक्ति अपने अनुभव के आधार पर काम करता है । इस देश में अथवा विश्व में अनेक, उद्योग धंधे ,कारखाने एवं नौकरियाँ उपलब्ध है । मैं जिन 30 सफल स्त्रिी - पुरुषों से मिला हूँ एवं जिनका मैंने अध्ययन किया है उसी की एक झलक मैनें इस ग्रंथ मे पेश की है । चेहरे के विभिन्न आकार व उनके ऊपर ग्रहों का प्रभाव होने के कारण विभिन्न व्यावसायिक प्रवृतियाँ एवं सेवा-सामथ्र्य विकसित हुए हैं । आकृति का मतलब होता है मनुष्य की नैसर्गिक भावना । विश्व एक रंगभूमि है । पेट के लिए मनुष्य को कुछ न कुछ भूमिका स्वीकार करनी पड़ती है । इसलिए कोई मनुष्य कलाकार, नौकरी -पेशा इत्यादि होता है । चेहरे के ऊपर कपाल , आकृती रंग इत्यादि का प्रभाव इतना अचूक होता है कि मनुष्य को ईश्वर ने एक विशिष्ट कर्म के लिए बनाया है, ऐसा प्रतीत होता है ।

हथेली की अन्य रेखायें और उनका प्रभाव

1. वासना रेखा
यह रेखा मणिबंध से कनिष्ठा मूल तक ऐसे स्थित होती है कि इससे स्वास्थ्य रेखा का भ्रम होता है। यह कामशक्ति एवं भावना की प्रबलतासूचक है। यह रेखा यदि शुक्रक्षेत्र में चली गयी हो तो, कामतिरेक के कारण जीवन-शक्ति का हृास होता है। इससे जीवन-रेखा का औसत जीवन-मान बदल जाता है। यह रेख बहुत कम हाथांे पर पायी जाती है।
2. अत्ज्र्ञान-रेखा
यह रेखा दार्शनिक या मनोवैज्ञानिक हाथ पर पायी जाती है। यह कनिष्ठा के मूल से तिरछी या अद्धवृत्ताकार मणिबंध के चंद्रक्षेत्र की ओर आती है। यह रेखा बहुत स्पष्ट नहीं होती और बहुत ही कम व्यक्तियों में पायी जाती है। सही रेखा को इसकी धूमिलता ही स्वास्थ्य एवं वासना रेखा से अलग करती है। यह तिरछी अद्धवृत्ताकार होती है।कीरो का कथन है कि ऐसा व्यक्ति अत्यधिक संवदेनशील होता है। उसे पूर्वाभास होता है, वह अतज्र्ञान से प्रकाशित रहता है। चाहे उसका मानसिक या सामाजिक जीवन जिस भी स्तर का हो। वह स्वप्न में भविष्य देखने वाले, अन्तज्र्ञान मंे चेतावनी सुनने वाले होते हैं। कीरो कहते हैं कि विज्ञान इसे संयोग कहता है। किंतु प्रकृति के नियमों में अपवाद नहीं होता। हमें मानना होगा कि प्रकृति में कोई ऐसी शक्ति है, जो प्रत्येक घटना को निश्चित कार्यक्रम पर नियंत्रित करती हैं। ये लोग तीव्र संवेदन शक्ति के कारण उसे समझ लेते हैं।
3. मणिबंध-रेखायें
ये कलाई में होती है।
1. ये तीन होनी चाहिये और सीधी छल्ले की भांति कलाई पर मुड़ी होनी चाहिये। यह जातक के सर्वोत्तम व्यक्तित्व एवं स्वास्थ्य की सबलता की द्योतक है। इसका संकेत आतंरिक उर्जा और मानसिक स्थिति को स्पष्ट करता है। इसके प्रभाव को बाहरी शरीर या व्यक्तित्व को देखकर गलत न समझें।
2. मणिबंध में दो रेखायें या छल्ले हों, तो उपर्युक्त प्रभाव माध्यम एवं एक हो तो निष्कृष्ट होता है। चार छल्ले वाला मणिबंध शायद ही कहीं पाया जाता हो पर यह सबसे उत्तम है।
3. पश्चिम में इस पर आयुविचार भी किया जा सकता है-चार वलय-84 से 100 वर्ष, तीन वलय-68 से 84 वर्ष, दो वलय-46 से 56 वर्ष, एक वलय-23 से 28 वर्ष।
4. यदि मणिबंध रेखायें फैली हुई हांे, एक दूसरे से मिल नहीं रही हों। वे अनेक दिशाओं से जा रही हांे, तो साहस, प्रभाव और उन्नति की द्योतक है।
5. कीरो ने इस रेखा को को कामशक्ति के आकलन की रेखा माना है। यह उफर की ओर चाप बना रही हो ता कामशक्ति का अभाव होता है। इसका मुख्य आधार उफरी वलय की स्थिति है।

4. शुक्र रेखायंे
जो रेखायंे शुक्रक्षेत्र से उठती हैं, उन्हंे शुक्रक्षेत्रीय रेखायंे कहते हैं। मुख्य रेखा पर इनका क्या प्रभाव होता है, ये हम पूर्व मंे ही बता आये हैं। किंतु इस क्षेत्र से कुछ अन्य रेखायंे भी उठती हैें। ये रेखायें निम्न प्रभाव डालती हैं।;कद्ध आड़ी तिरछी- विलासी, चंचल, मनमौजी, सुखभिलाषी।;खद्ध गहरी खड़ी- उत्तम स्मरण-शक्ति।;गद्ध खड़ी पुष्ट गहरी रेखायंे- कठोरता, कृतघ्नता, चतुरता।;घद्ध बाल जैसी महीन रेखायें- मानसिक, शारीरिक परतंत्रता।इससे भी कटिंग, पुष्टता, चिन्ह आदि के प्रभाव परिणाम पूर्ववत् नियमों से होते हैं।
5. गुरु-रेखायें
ये रेखायें गुरूक्षेत्र मंे स्थित होती हैं। प्रभाव एवं फल
1. एक सरल रेखा कड़ी हो और अंगूठे एवं तर्जनी के प्रथम पर्व के उफरी भाग में चक्र का चिन्ह हो, दानशीलता, दयालुता, यशस्विता की द्योतक हैै। चक्र न भी हो, तो भी वह इन गुणों से ही युक्त होता है।
2. दो उपर्युक्त प्रकार की रेखायें हों, तो यह इच्छाशक्ति के दो भागों मे बंटने के संकेत हैं।
3. गुरूक्षेत्र में बहुत सी खड़ी या आड़ी रेखायंे हों, तो जातक दुराचारी होती है। यदि एक खड़ी रेखा तर्जनी एवं अनामिका के मध्य हो तो पेट एवं आंत की बीमारी बनी रहेगी।
4. यदि कोई रेखा गुरू से चलकर सूर्य तक आयी हो, तो यह रोग की परिचायक है। ऐसे हाथ वाला व्यक्ति हमेशा रोगी बना रहेगा। इसके बाद भी यह विद्वता, महत्वाकांक्षा, आध्यात्मिकता आदि की वृद्धि करती है।
5. यदि गुरूक्षेत्र की दो खड़ी रेखाआंे को कोई रेखा काट रही हो तो आध्यात्मिकता, ख्याति, धन, विनम्रता आदि की वृद्धि करती है।
6. तर्जनी मूल में तीन खड़ी छोटी रेखायंे हों, तो जातक शास्त्रज्ञाता, तत्त्वदर्शी और विद्वान होता है।
7. यदि उपर्युक्त रेखायंे तीन हों, तो जातक मिथ्याभाषी, दुष्ट, विषयी, बलवान एवं वातरोगी होता है।
8. यदि इस क्षेत्र में तीन आड़ी रेखा हों और उन्हें कोई रेखा काट रही हो, तो अपयश और हानि की सूचक है।
9. गुरूक्षेत्र पर दो लहरदार रेखायें हों, तो यह दुर्भाग्यकारी है। यह मस्तक-रेखा से भी मिल रही हो, तो दुर्मति की सूचक है।
10. गुरूक्षेत्र की दो टेढ़ी रेखायंे शनिक्षेत्र पर चली गयी हों, तो ये धन एवं सफलता की सूचक है।
11. यदि गुरूक्षेत्र पर सरल स्पष्ट रेख खड़ी हो और हृदय-रेखा गुरू शनि क्षेत्र के बीच से होकर मध्यमा-तर्जनी के बीच में गयी हो, तो यह तत्त्वज्ञान, धर्म, ज्ञान आदि के प्रति रूचि दर्शाती है और जातक की इसमें सफलता और ख्याति प्राप्त होती है।

देह भाषा

प्राचीनकाल से ही जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों के साथ-साथ मनुष्य को भी पारस्परिक संवाद कायम करने तथा अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए माध्यम की आवश्यकता चली आ रही है और उसने माध्यम के रूप में अपनाया हाव-भाव तथा संकेतों को। लम्बे समय तक आदिमानव संकेतों के माध्यम से ही परस्पर संवाद कायम करता रहा। धीरे-धीरे मानवजाति के विकास के साथ-साथ ही इस क्षेत्र में भी विकास हुआ और अभिव्यक्ति का माध्यम संकेतों के स्थान पर शाब्दिक भाषा ने ले लिया। अर्थात् परस्पर संवाद हेतु मानवजाति ने शारीरिक भाषा को पार करके शब्दों की अनोखी दुनियां में कदम रख दिया और आज तक शाब्दिक भाषा ही माध्यम बनी हुई है। किंतु इसके मूल में छिपी हुई मूकभाषा ;शारीरिक भाषा का अस्तित्व कदापि समाप्त ना हुआ अपितु प्रचलन कम हो गया और सिर्फ शारिरिक रूप से अक्षम या विकलांग मनुष्यों के लिए शारीरिक भाषा की आवश्यकता और उपयोगिता रह गई। शारीरिक भाषा भावनाओं की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम हो सकती है। जहां हम एक ओर अपने अभिनयपूर्ण जीवन में शब्दों का सहारा लेकर दिखावटी ताना-बाना बुन देते हैं तो वहीं दूसरी ओर हमारी शारीरिक मुद्राएँ और संकेत हमारे मन में छिपे अव्यक्त को भी स्पष्ट रूप से प्रदर्शित कर देते हैं और हम उनसे अनजान बने रह जाते हैं। अर्थात् शब्दों की भाषा के माध्यम से तो सत्य और वास्तविकता को छिपाया जा सकना संभव है, किंतु हमारी शारीरिक मुद्राएं कदापि सत्य को छिपाती नहीं है अपितु अव्यक्त भावनाओं को भी स्पष्टतः सत्यतापूर्वक अभिव्यक्त कर देती है। आवश्यकता है तो बस इस शारीरिक भाषा और इसके संकेतों व मुद्राओं को पहचानने की समझ आप में होनी चाहिए। देह की भाषा पर दुनिया भर में शोध् कर रहे शोधर्थियों ने इसका नाम देह भाषा रख दिया ताकि आम बोलचाल में सहजता के साथ इस शब्द का प्रयोग किया जा सके और वास्तव में संकेतों की इस अद्भुत भाषा को यह नया नामकरण इतना उपयुक्त साबित हुआ कि महज पिछले कुछ वर्षों में ही देह भाषा पूरी दुनिया में प्रचलित हो गई। हाल के कुछ वर्षों में दुनिया भर में इस देह भाषा पर हजारों की तादाद में शोध् पत्र और आलेखों के प्रकाशन के साथ-साथ अनेकानेक भाषाओं में पुस्तकें भी प्रकाशित और प्रसारित हुई हैं। शारीरिक भाषा ;देह भाषा का माध्यम हमारे शारीरिक अंग हैं, जिनको हमारा अद्भुत मस्तिष्क नियंत्रित और संचालित करता है। उफरी तौर पर प्रत्येक व्यक्ति के मस्तिष्कीय तंत्र का स्तर भिन्न-भिन्न होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति की भावनाओं की अभिव्यक्ति के माध्यम में भी स्तरीय असमानताएं पाई जाती हैं। किंतु परोक्ष रूप से तो हमारी भावनाएं देह भाषा के माध्यम से ही प्रदर्शित होती हैं। हमारे मन में गहनतम बिंदु से आने वाली तरंगे भी तो शरीर के स्तर पर किसी संकेत अथवा मुद्रा के माध्यम से ही प्रकट होती हैं। अतएव हर युग में शारीरिक मुद्राएं भाषा की अभिव्यक्ति का सशक्त एवं प्रमाणिक माध्यम साबित हो सकती है। आम तौर से भले ही ‘देह भाषा’ अभी प्रचलन में नहीं हैं, किंतु वर्तमान जीवन के हर कदम पर मिलने वाले धेखे और असत्यता की संभावनाओं के मद्देनजर आने वाले दिनों में फर से शारीरिक भाषा ;देह भाषा का महत्व समझ पाने और इसका वर्चस्व स्थापित होने तथा दैनिक जीवन में संवाद और भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम बन जाने की संभावना से कतई इंकार भी नहीं किया सकता है। आज अत्यध्कि आवश्यकता है कि हम अपने दैनिक जीवन में ‘देह भाषा’ की आवश्यकता, इसका महत्व और इस माध्यम की उपयोगिता समझते हुए इस अद्भुत भाषा को पुनः प्रयोग में लावें और दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे झूठ और धेखे भरे इस दिखावटी जीवन की गहराईयों में जाकर -‘देह भाषा’ के माध्यम से अपने आपको समय से पूर्व ही सुरक्षित एवं सचेत कर सकने की समझ और क्षमता अपने अंदर उत्पन्न कर लेंवें और यह संभव है ‘देह भाषा’ का गहन अध्ययन करके उसके माध्यम से जीवन को सुरक्षित कर सकें। इस पुस्तक में गुरूजी ने अपने जीवन के प्रत्यक्षाप्रत्यक्ष अनुभवों को सचित्रा रूप से सरल भाषा में सहजता के साथ प्रस्तुत करके दैनिक जीवन में प्रचलित सामान्य तथा विशिष्ट शारीरिक मुद्रायें एवं संकेतों को वर्गीकृत करके उनका विवरण प्रस्तुत किया है। प्रत्येक चित्र के साथ प्रदर्शित विवरण से उस शारीरिक मुद्रा को समझने तथा उसका फल जान सकने में सुविध होगी। निरंतर अभ्यास के द्वारा इस अद्भुत विद्या में दक्षता हासिल की जा सकती है।

शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

ग्रहों के विशिष्ट योग

कुंडली में ग्रहों की स्थिति के अनुरूप मनीषियों ने इन्हें विशिष्ट योगों के नाम दिए हैं।
1. युति : दो ग्रह एक ही राशि में एक सी डिग्री के हों तो युति कहलाती है। अशुभ ग्रहों की युति अशुभ फल व शुभ ग्रहों की युति शुभ फल देती है। अशुभ व शुभ ग्रह की युति भी अशुभ फल ही देती है।
2. लाभ योग : एक ग्रह दूसरे से 60 डिग्री पर हो या तीसरे स्थान में हो तो लाभ योग होता है। यह शुभ माना जाता है।
3. केंद्र योग : दो ग्रह एक दूसरे से 90 डिग्री पर हो या चौथे व 10वें स्थान पर हो तो केंद्र योग होता है। यह योग शुभ होता है।
4. षडाष्टक योग : दो ग्रह 150 डिग्री के अंतर पर हो या एक दूसरे से 6 या8 वें स्थान में हों तो षडाष्टक दोष या योग होता है। यह कष्‍टकारी होता है।
5. नवपंचम योग : दो ग्रह एक दूसरे से 120 डिग्री पर अर्थात पाँचवें व नवें स्थान पर समान अंश में हो तो यह योग होता है। यह अति शुभ माना जाता है जैसे सिंह राशि का मंगल और धनु राशि का गुरु -
6. प्रतियुति : इसमें दो ग्रह 180 डिग्री पर अर्थात एक दूसरे से सातवें स्थान पर होते हैं। विभिन्न ग्रहों के लिए इसके प्रभाव भिन्न-भिन्न होते हैं।
7. अन्योन्य योग : जब ग्रह एक दूसरे की राशि में हो तो यह योग बनता है। (जैसे वृषभ का मंगल और वृश्चिक का शुक्र) इसके भी शुभ फल होते हैं।
8. पापकर्तरी योग : किसी ग्रह के आजू-बाजू (दूसरे व व्यय में) पापग्रह हो तो यह योग बनता है। यह बेहद अशुभ होता है।

मूलांक से जानें बच्चे का स्वभाव

ज्योतिष में मूलांक जन्म तारीख के अनुसार 1 से 9 माने जाते हैं। प्रत्येक अंक व्यक्ति का मूल स्वभाव दिखाता है। बच्चे का मूल स्वभाव जानकर ही माता-पिता उसे सही तालीम दे सकते हैं। आइए, जानें कैसा है आपके बच्चे का स्वभाव।मूलांक 1 (1, 10 19, 28) : ये बच्चे क्रोधी, जिद्‍दी व अहंकारी होते हैं। अच्छे प्रशासनिक अधिकारी बनते हैं। ये तर्क के बच्चे हैं अत: डाँट-डपट नहीं सहेंगे। इन्हें तर्क से नहीं, प्यार से समझाएँ।
* मूलांक 2 (2, 11, 20, 29) : ये शांत, समझदार, भावुक व होशियार होते हैं। माता-पिता की सेवा करते हैं। जरा सा तेज बोलना इन्हें ठेस पहुँचाता है। इनसे शांति व समझदारी से बात करें।
* मूलांक 3 (3, 12, 21,30 ) : ये समझदार, ज्ञानी व घमंडी होते हैं। अच्‍छे सलाहकार बनते हैं। इन्हें समझाने के लिए पर्याप्त कारण व ज्ञान होना जरूरी है।
* मूलांक 4 (4, 13, 22) : बेपरवाह, खिलंदड़े व कारस्तानी होते हैं। रिस्क लेना इनका स्वभाव होता है। इन्हें अनुशासन में रखना जरूरी है। ये व्यसनाधीन हो सकते हैं।
* मूलांक 5 (5, 14, 23) : बुद्धिमान, शांत, आशावादी होते हैं। रिसर्च के कामों में रूचि लेते हैं। इनके साथ धैर्य से व शांति से बातचीत करें।
* मूलांक 6 (6, 15, 24) : हँसमुख, शौकीन मिजाज व कलाप्रेमी होते हैं। 'खाओ पियो ‍मस्त रहो' पर जीते हैं। इन्हें सही संस्कार व सही दिशा-निर्देश जरूरी है।
* मूलांक 7 (7, 16, 25) : भावुक, निराशावादी, तनिक स्वार्थी मगर तीव्र बुद्धि के होते हैं। व्यसनाधीन जल्दी होते हैं। कलाकार हो सकते हैं। इन्हें कड़े अनुशासन व सही मार्गदर्शन की जरूरत होती है।* मूलांक 8 (8, 17, 26) : तनिक स्वार्थी, भावुक, अति व्यावहारिक, मेहनती व व्यापार बुद्धि वाले होते हैं। जीवन में देर से गति आती है। इन्हें सतत सहयोग व अच्छे साथियों की जरूरत होती है।
* मूलांक 9 (9, 18, 27) : ऊर्जावान, शैतान व तीव्र बुद्धि के विद्रोही होते हैं। माता-पिता से अधिक बनती नहीं है। प्रशासन में कुशल होते हैं। इनकी ऊर्जा को सही दिशा देना व इन्हें समझना जरूरी होता है।

ज्योतिष का विज्ञान

ज्योतिष भी अन्य विज्ञानों की तरह एक विज्ञान है और उसका मूल उद्‍गम सृष्टि के गर्भ में छिपे तथ्यों को जानने की उत्सुकता में निहित है। आकाश-मंडल, निर्बाध गति से चलने वाले रात-दिन, और जन्म-मरण के चक्र और सूर्य, चन्द्र तथा तारागणों के प्रति मानव का कौतूहल अनादिकाल से रहता आया है।इसी के परिणाम स्वरूप ज्योतिष की विद्या का प्रादुर्भाव हुआ और उसके शास्त्र को विभिन्न ग्रहों और काल का बोध कराने वाले शास्त्र के रूप में स्थापित किया गया। ज्योतिषशास्त्र को वेदों में भी समुचित प्रतिष्ठा प्रदान की गई थी। और यह तथ्य कतिपय व्यक्तियों की इस धारणा को सर्वथा निर्मूल सिद्ध करता है कि यह विज्ञान भारत में विदेशों से आयातित हुआ था।ज्योतिष का विज्ञान वस्तुतः अपने आप में इतना सशक्त और भरपूर है कि उसके प्रबल विरोधी भी उसके वैज्ञानिक पहलुओं की अवहेलना नहीं कर सकते। ज्योतिष विज्ञान के अन्तर्गत आने वाले ग्रह स्वयं किसी को सुख अथवा दुःख प्रदान नहीं करते। हाँ, उनका प्रभाव सृष्टि के अणु-परमाणुओं पर निरंतर पड़ता रहता है और उससे यहाँ का प्राणी जगत भी प्रभावित होता है। उदाहरण स्वरूप कमल का पुष्प सूर्य की प्रथम किरण पाते ही खिल उठता है और फिर सूर्यास्त होने के साथ ही उसकी पंखुड़ियाँ बंद हो जाती हैं। इसे सूर्य की अपनी विशेषता नहीं कहा जाएगा, बल्कि उन दोनों के मिलन के फलस्वरूप ही इस प्रकार की प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है।कोई भी विज्ञान अपने आप में संपूर्ण नहीं होता। उसकी कुछ विशेषताएँ होती हैं और कुछ खामियाँ। इसी तरह ज्योतिष विज्ञान को भी सर्वथा पूर्ण और निष्कलंक कहना कठिन है। इसका मुख्य कारण यह है कि इस विज्ञान के गणित को अनादिकाल से हमारे पूर्वजों ने गोपनीय बनाए रखने की चेष्टा की और तत्संबंध में जो ज्ञान जिसके पास था वह उसके जीवन के साथ ही समाप्त होता चला गया।आज भी इस विज्ञान को फलने-फूलने के लिए न उस तरह का परिवेश मिल रहा है जो उसके विकास और विस्तार के लिए अपेक्षित है, और न वह वातावरण जिसके सहारे वह अपने को पुष्पित-पल्लवित करने में समर्थ हो सके। अपनी तमाम कमियों के बावजूद मनुष्य के जीवन में ज्योतिष-विज्ञान का सर्वोपरि स्थान है। यह बात भी असंदिग्ध है कि समग्र विश्व इस विज्ञान की सहायता से अपनी विभिन्न समस्याओं के निराकरण में असामान्य रूप से सफल हो सकता है।

राशि के अनुसार सफलता के धार्मिक उपाय

जीवन में सुख के साथ ही कभी-कभी दुःख के क्षणों का भी सभी को सामना करना पड़ता है। दुःख के क्षणों में यदि संबल बनाए रखा जाए तो उस पर पार पाया जा सकता है इसके अलावा कुछ ऐसी आध्यात्मिक क्रियाएं भी हैं जिनसे संकटों से निजात पाई जा सकती है। यह क्रियाएं विभिन्न राशियों पर अलग-अलग प्रकार से लागू होती हैं। यदि याचक अपनी राशि के अनुसार दिये गये सुझावों का पालन करें तो लाभ संभव है।
मेष राशि- मेष राशि के लोगों के आराध्य देव गणेश जी हैं। उन्हें उनका पूजन तो करना ही चाहिए साथ ही हर मंगलवार को हनुमान जी का प्रसाद चढ़ाएं और पूरा प्रसाद मंदिर में ही बांट दें। पहले हनुमान जी के पैर देखें फिर चेहरा। इसके अलावा वह बरकत के लिए मछलियों और पक्षियों को दाना दें तथा घर के सदस्यों से तनाव हो तो छेद वाले तीन तांबे के सिक्के बहते जल में प्रवाहित कर दें। उच्च शिक्षा के लिए लाल फूल का पौधा लगाएं। लाल रोली डाल कर सूर्य को जल चढ़ाएं। कोर्ट केस जीतने के लिए हरे रंग के कपड़े दान दें। इसके अलावा केसर वाला मीठा चावल कन्याओं को खिलाएं इससे तनाव दूर होगा।
वृषभ राशि- इस राशि के लोगों को चाहिए कि संपत्ति के विवाद को सुलझाने के लिए गणपति का पूजन करें। पढ़ाई में परेशानी आ रही हो तो गाय को हरा चारा खिलाएं। मंगलवार के दिन हनुमान जी के मंदिर में शुद्ध घी का दोमुखी दीया जलाएं और लाल चंदन की माला चढ़ाएं इससे दांपत्य की परेशानी दूर होगी। काम शुरू हो कर बीच में अधूरा रह जाता हो तो 21 गुरुवार को गरीब ब्राम्हण को भोजन कराएं। दफ्तर में तनाव हो तो पीपल को जल चढ़ाएं और कौए को मीठी रोटी खिलाएं। अपाहिज व्यक्ति को दान दें। आमदनी में दिक्कत हो तो केसर का टीका माथे पर लगाएं।
मिथुन राशि- इस राशि के लोग हरे रंग का रुमाल हमेशा अपने पास रखें। संपत्ति विवाद के हल के लिए बुजुर्गों को रात में दूध पीने के लिए दें। घर में कलह होती हो तो शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को एक कन्या को भोजन कराएं और नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। बीमारी में पैसा खर्च हो रहा हो या दफ्तर में परेशानी आ रही हो तो किसी को मीठा व नमकीन दोनों खिलाएं। दफ्तर की परेशानियों से बचने के लिए 1 हल्दी की गांठ पानी में बहा दें और दूसरी दफ्तर में रख लें। गरीब व्यक्ति को काला कंबल दान दें, काम सुचारू चलेगा। शोहरत पाने के लिए पानी में फिटकरी डाल कर स्नान करें।
कर्क राशि- इस राशि के लोगों को चाहिए कि यदि उनकी किसी से भी बहस हो जाती हो, तो शिव मंदिर में लाल चंदन दान दें। बचत न होती हो तो मां की सेवा करें। सफलता के लिए रोज पूजा के बाद चंदन का टीका लगाएं। बुजुर्गों का कहा मानें और उनका सम्मान करें, स्वास्थ्य की परेशानियां कम होंगी। यदि विवाहित हैं तो जीवनसाथी की राय जरूर लें। इससे नुकसान की संभावनाएं कम हो जाती हैं। नए काम से पहले पितरों को याद करें। धन की इच्छा हो तो घर में लाल फूल की बेल लगाएं।
सिंह राशि- इस राशि के जातक नियमित सूर्य को अध्र्य दें और लाल चंदन का टीका लगाएं। सौहार्द्र के लिए हर बुधवार को गणेश जी को किशमिश चढ़ाएं। शुक्रवार को इत्र लगाएं इससे काम आसानी से बनेंगे। सात शुक्रवार कुएं में फिटकरी का टुकड़ा डालें इससे काम बन जाएगा। उच्च शिक्षा के लिए कुत्ते को रोटी खिलाएं और झूठ न बोलें। बहते पानी में सात बादाम और एक नारियल शुक्रवार के दिन प्रवाहित करें इससे बीमारी से छुटकारा मिलेगा। घर में तुलसी का पौधा लगाएं और रोज पानी डालें। सुबह बड़ों के पैर छुएं। मंगलवार को हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाएं। लाल रंग का रुमाल अपने पास रखें इससे भाग्योदय होगा।
कन्या राशि- धन की हानि से बचने के लिए गले में दोमुखी रुद्राक्ष पहनें। सुख-शांति के लिए हर शनिवार को पीपल के पेड़ को जल चढ़ाएं। परेशानी से बचने के लिए घर में कुत्ता न पालें। उच्च शिक्षा के लिए 12 मुखी रुद्राक्ष पहनें। काम आसानी से होते रहें, इसके लिए घर में गंगाजल रखें। किसी से बेकार बहस हो जाती हो तो खाने के बाद सौंफ खाएं। छोटी उंगली में सोने में पन्ना पहनें। शिव पूजा करें इससे आर्थिक लाभ होगा। प्रतिष्ठा के लिए हरे रंग के कपड़े ज्यादा से ज्यादा पहनें। स्थायी सफलता के लिए तुलसी की माला पहनें।
तुला राशि- इस राशि के लोग बड़ों का सम्मान करें और 12 मुखी रुद्राक्ष पहनें। 200 ग्राम गुड़ की रेवड़ी और 200 ग्राम बताशे 21 मंगलवार तक बहते पानी में प्रवाहित करें इससे धन की समस्या दूर होगी। मंगलवार को हुनमान चालीसा का पाठ करें। काम में बार-बार दिक्कतें आ रही हों तो नियमित किसी मंदिर में भगवान के दर्शन करें। छोटे भाई-बहनों की मदद करें।
वृश्चिक राशि- इस राशि के लोग रदुव्र्यसन से जितना दूर रहेंगे उतनी ही तरक्की करेंगे। उच्च शिक्षा के लिए केले के पेड़ की पूजा करें और जल चढ़ाएं। अनिश्चितता की स्थिति हो तो हाथी को गन्ना खिलाएं।
धनु राशि- स्नान के बाद माथे पर लाल चंदन या रोली का टीका लगाएं। उच्च शिक्षा के लिए तांबे के बरतन में पानी भर कर अपने कमरे में रखें और सुबह उसे पौधों में डाल दें। परिवार में प्रेम के लिए नीम और अशोक के पेड़ लगवाएं। सुखमय दांपत्य जीवन के लिए तुलसी में जल डालें। दफ्तर में परेशानी आ रही हो तो महिलाएं बाएं हाथ और पुरुष दाएं हाथ में चांदी का कड़ा पहनें। बहस या विवाद से बचने के लिए चांदी के बरतन में रात में पानी भरें और सुबह उसे पी लें। शांति और समृद्धि के लिए घर में कचरा या गंदगी ना रहने दें।
मकर राशि- आर्थिक परेशानियों से बचने के लिए शुक्रवार को सफेद गाय को चावल में घी और चीनी डाल कर खिलाएं। परेशानी से बचने के लिए लाल सांड को मीठी रोटी खिलाएं। गुरुवार को विष्णु मंदिर में पीले फूल चढ़ाएं।
कुंभ राशि- ध्यान रखें कि आपके यहां से कोई भूखा न जाए। उच्च शिक्षा के लिए तुलसी के पत्ते खाएं। गणपति व हनुमान जी की पूजा करें। रविवार का व्रत रखें और बिना नमक का भोजन करें इससे दांपत्य सुख मिलेगा।
मीन राशि- उन्नति के लिए माथे पर चंदन लगाएं, बुजुर्गों को सम्मान करें। बीमारियों में पैसा खर्च हो हो तो गले में तांबे का सूय्र पहनें। मंदिर या प्याऊ बनाने के लिए पैसा दान करें। दांपत्य जीवन में तनाव चल रहा हो तो महिलाओं से न झगड़ें न ही उन्हें अपमानित करें। कभी भी सट्टे और लाटरी में पैसा न लगाएं। नौकरी में परेशानी आ रही हो तो पीपल के पेड़ की जड़ में पानी डालें और कभी भी झूठ न बोलें। आर्थिक परेशानी हो तो तेल में अपना चेहरा देख कर उस तेल को दान कर दें। दोमुखी या 12 मुखी रुद्राक्ष पहनें।

भूमि एवं वास्तु मंडल

भूमि एवं वास्तु मंडल पूजा गृह निर्माण के पश्चात वास्तु-पुरूष की पूजा करते हुए यही कामना की जाती है कि इस आवास में त्रिशक्तियों का वास रहे। लक्ष्मी हमें धन, संपदा व वैभव प्रदान करे। सरस्वती ज्ञान के भंडार खोल दें और पार्वती हमें स्वास्थ्य प्रदान करें। हिंदू धर्म में 56 करोड़ देवी-देवताओं की परिकल्पना व उनका अस्तित्व माना जाता है। इनमें प्रमुख ब्ा्रrाा, विष्णु, महेश व त्रिशक्ति लक्ष्मी, सरस्वती व पार्वती हैं। गृह निर्माण के पश्चात वास्तु-पुरूष की पूजा करते हुए यही कामना की जाती है कि इस आवास में त्रिशक्तियों का वास रहे और वे हमें सुख समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करें। वास्तु-पुरूष मंडल भी अंतरिक्ष में उपलब्ध विभिन्न ऊर्जाओं का प्रतीक है, ऊर्जा का उचित ढंग से गृह में प्रवेश हो यही इसका अभिप्राय है। पंच भूत यथा वायु, अग्नि, भूमि, जल व आकाश तžव का उचित समायोजन घर में हो।जीवन शक्ति प्रदाता सूर्य व इसका प्रभाव।पृथ्वी की आकर्षण शक्ति व चुम्बकीय लहरों का प्रभाव।वास्तुपुरूष मंडल का उचित प्रयोग।गृह निर्माण की प्रक्रिया शुरू होने से लेकर निर्माण संपूर्ण होने के बाद गृह प्रवेश के दौरान शास्त्रों में चार बार पूजा की व्यवस्था है। प्रथम पूजा निर्माण आरम्भ करने पर की जाती है, जिसे शिलान्यास कहा जाता है। इसमें नंदादि पांच शिलाओं का पूजन होता है। दूसरी पूजा देहरी न्यास कहलाती है। द्वार हेतु देहरी रखी जाती है, तब यह पूजा होती है। तीसरी पूजा आवास संपूर्ण होने पर वास्तु मंडल की पूजा की जाती है। इसमें मंत्रोच्चार व बलि विधान द्वारा बुरी आत्माओं को घर से दूर किया जाता है और लाभ प्रदान कराने वाली शक्तियों का आह्वान कर उनकी स्थापना की जाती है। चतुर्थ पूजा के माघ्यम से गृह में प्रवेश किया जाता है। प्राय: तीसरी और चौथी पूजा एक साथ ही संपन्न की जाती है। गृह प्रवेश से पूर्व प्रथम रात्रि को व दूसरे दिन गृह प्रवेश के समय ये पूजाएं की जाती हैं।वास्तु पुरूष मंडल के माघ्यम से प्रतीकात्मक वास्तु पुरूष की पूजा की जाती है। पुरोहित या वास्तु पूजा विशेषज्ञ से ही यह पूजा संपन्न कराई जाती है। इसमें मुख्यत: 81 पदों वाले वास्तु-पुरूष मंडल की रचना चौकी पर की जाती है। कुंकंुम से 10-10 सीधी व आड़ी रेखाओं से 81 पद वास्तु मंडल तैयार किया जाता है। फिर इन 81 कोष्ठकों में देवताओं के अनुसार रंगीन अक्षत भरकर देवताओं की स्थापना की जाती है। बाह्य कोष्ठक में 32 देवता होते हैं, जो क्रमश: अग्नि आदि हैं। मघ्य के 9 स्थान ब्ा्रrाा हेतु सुरक्षित हैं। इसके अलावा 13 देवता भीतर की तरफ होते हैं। वास्तु मंडल की स्थापना कर वास्तु मंत्रों का उच्चारण करते हुए अक्षत, दूर्वा, दही, पुष्प व अन्य पूजन सामग्री से षोडशोपचार पूजन करते हैं और वास्तु पुरूष से इस प्रकार प्रार्थना की जाती है- "हे भूमिरूपी शैय्या पर शयन करने वाले वास्तु पुरूष आपको मेरा शत शत नमन। प्रभु आप मेरे आवास में धनधान्य, विद्या व स्वास्थ्य की निरंतर वृद्धि करते रहें। उपरोक्त मंडल पूजा के बाद गृह प्रवेश पूजा की जाती है।गृह प्रवेश पूजा में आवास को गंगाजल से पवित्र करके फिर वरूण देव की पूजा कर बाहर गणपति स्थापना करते हैं। गृह स्वामी अपने हाथ में प्रज्वलित दीपक लेकर अथर्ववेद में बताई निम्न स्तुति करता है- "हे भव्य भवन मैं आपको देख रहा हूं व आप मुझे देख रहे हैं। मैं आपके भीतर शांतिपूर्वक निवास करना चाहता हूं। आपके अंदर विभिन्न देवताओं के अलावा जल व अग्नि भी स्थित हैं। प्रमुख द्वार से अखिल विश्व में मौजूद विभिन्न सकारात्मक ऊर्जाओं का अपने आप घर में प्रवेश हो रहा है।" यह प्रार्थना कर दीपक सहित घर में प्रवेश करके उस दीपक को मुख्य स्थान पर स्थापित करते हैं। उस जगह पर पहले से चावल, धान, श्वेत पुष्प व सुंगधित अगरबत्ती जलती हुई मौजूद रहे। प्रवेश पश्चात दुर्गाजी की आहुतियां हवन में दी जाती हैं। देवताओं की पूजा-अर्चना कर प्रसाद चढ़ाते हैं। पूरे घर में दुग्ध जल मिश्रित धारा या पानी में चंदन-तेल मिलाकर छिड़काव करते हैं, ताकि रहने वाले सौभाग्यशाली धन-संपन्न व नीरोग रहें। पूजा में प्रयुक्त सामग्री का सीधा संबंध पंच तžवों से है। दीपक अग्नि तžव का, जल व दूध, जल तžव का, अगरबत्ती का धुआं वायु तžव का, फूल व अक्षत पृथ्वी तžव का व पूजा की घंटी व शंखनाद आकाश तžव का प्रतीक हैं। -पं. नंदकिशोर शर्मा

गुप्त नवरात्र और तांत्रिक साधनाएं

गुप्त नवरात्र और तांत्रिक साधनाएं ग्रहण काल, होली, दीपावली, संक्रांति, महाशिवरात्रि आदि पर्व मंत्र-तंत्र और यंत्र साधना सिद्धि के लिए उपयुक्त बताए गए हैं, लेकिन इनमें सबसे उपयुक्त पर्व "गुप्त नवरात्र" है। तांत्रिक सिद्धियां गुप्त नवरात्र में ही सिद्ध की जाती हैं।साल में चार नवरात्र होते हैं। इनमें दो मुख्य नवरात्र- चैत्र शुक्ल और अश्विनी शुक्ल में आते हैं और दो गुप्त नवरात्र आषाढ़ शुक्ल और माघ शुक्ल में होते हैं। इनका क्रम इस तरह होता है- पहला मुख्य नवरात्र चैत्र शुक्ल में, फिर गुप्त नवरात्र। दूसरा मुख्य नवरात्र अश्विनी शुक्ल में फिर गुप्त नवरात्र। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें, तो चारों नवरात्रों का संबंध ऋतु परिवर्तन से है। आषाढ़ शुक्ल, 23 जून मंगलवार को गुप्त नवरात्र प्रारंभ हो रहे हैं। मंत्र शास्त्र के अनुसार वेद मंत्रों को ब्राहा ने शक्ति प्रदान की। तांत्रिक प्रयोग को भगवान शिव ने शक्ति संपन्न बनाया है। इसी प्रकार कलियुग में शिव अवतार श्रीशाबर नाथजी ने शाबर मंत्रों को शक्ति प्रदान की। शाबर मंत्र बेजोड़ शब्दों का एक समूह होता है, जो सुनने में अर्थहीन सा प्रतीत होता है। कोई भी मंत्र-तंत्र-यंत्र को सिद्ध करने के लिए गोपनीयता की आवश्यकता होती है। बिना गोपनीयता के कोई भी मंत्र-यंत्र सिद्ध नहीं होता। मंत्र सिद्धि के लिए चार चीजें आवश्यक हैं- (1) एकांत (2) परम शांति (3) एकाग्रता (4) दृढ़ निश्चय। इसके साथ-साथ मंत्रदाता गुरू में पूर्ण श्रद्धा, भक्ति तथा भाव आदि का होना जरू री है। गुप्त नवरात्रा में अधिकतर साधक तंत्र, शाबर मंत्र, योगनी आदि सिद्ध करते हैं, जिन्हें तांत्रिक सिद्धियां कहा जाता है। जो लोग ऎसा करते हैं, उनकी आत्मा शुद्ध नहीं होती है। वे खुद को सिद्ध करने और प्रसिद्धि प्राप्ति की इच्छा से ये सिद्धियां प्राप्त करते हैं। गृहस्थ व्यक्तियों को ऎसी सिद्धियों से दूर रहना ही हितकर है।गृहस्थ व्यक्तियों को अपनी कुंडली में स्थित अरिष्ट ग्रहों की प्रतिकूलता को दूर करने के लिए संबंधित ग्रहों के मंत्रों का जप करना हितकर और उपयोगी रहेगा। इसके अतिरिक्त गणेशजी कष्ट निवारणकर्ता हैं। सूर्य प्राण रक्षक हैं और लक्ष्मीजी आर्थिक सम्पन्नता प्रदान करती हैं। इसलिए गृहस्थ अपने कष्ट निवारण के लिए इनके मंत्रों का जप प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक विधिपूर्वक करें, तो लाभकारी रहेगा।गणेश गायत्री मंत्र- "ú वक्रदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ती प्रचोदयात।"सूर्य उपासना मंत्र- "ú ह्वीं ह्वीं सूर्याय नम:।ú ह्वौं घृणि सूर्य आदित्य श्रीं ú।।लक्ष्मी-गणेश मंत्र- ú श्रीं गं सौम्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।सर्व कार्य सिद्धि यंत्रगुप्त नवरात्रा में भोजपत्र पर अष्टगंध से दो यंत्र को 21 बार लिखें। दो अंक से यंत्र लिखना प्रारंभ करें। नवरात्रा के पश्चात एक यंत्र को अपने दाएं बाजू पर बांध लें तथा दूसरे को बहते पानी में प्रवाहित कर दें। यंत्र पानी में प्रवाहित करने के पश्चात ही पहला यंत्र बाजू में बांधें।सावधानियां: बिना आसन के, चलते-फिरते, सोते हुए, पैर फैलाकर साधना करना निषेध है। मंत्र-यंत्र की सिद्धि के लिए रेशम, कंबल, कुशा या चर्म का आसन श्रेष्ठ होता है। मंत्र जप धीरे-धीरे शुद्ध उच्चारण के साथ करें। जप करते समय सिर व शरीर को न हिलाएं। मंत्रदाता गुरू पर श्रद्धा एवं विश्वास रखते हुए साधना करने पर ही वह फलीभूत होगी।द्वादश राशि मंत्रदेश में करोड़ों व्यक्ति ऎसे होंगे, जिनको अपने जन्म दिनांक एवं समय का ज्ञान नहीं है। ऎसे व्यक्ति अपने बोलते नाम से जो राशि बनती है, उस राशि के मंत्र का जप करके लाभांवित हो सकते हैं। राशि अनुसार मंत्र इस प्रकार हैं-मेष राशि- ú ह्रीं श्रीं लक्ष्मीनारायणाय नम:वृष राशि- ú गोपालाय उत्तर घ्वजाय नम:मिथुन राशि- ú क्लीं कृष्णाय नम:कर्क राशि- ú हिरण्यगर्भाय अव्यक्तरू पिणे नम:सिंह राशि- ú क्लीं ब्राहणे जगदाधाराय नम:कन्या राशि- ú नमो प्रीं पीतांबराय नम:तुला राशि- ú तत्व निरंजनाय तारक रामाय नम:वृश्चिक राशि- ú नारायणाय सुरसिंहाय नम:धनु राशि- ú श्रीं देवकृष्णाय ऊघ्र्वषंताय नम:मकर राशि- ú श्रीं वत्सलाय नम:कुंभ राशि- ú श्रीं उपेन्द्राय अच्युताय नम:मीन राशि- ú क्लौं उद्घृताय उद्धारिणे नम: पं. चांदनारायण पारीक