शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

गुप्त नवरात्र और तांत्रिक साधनाएं

गुप्त नवरात्र और तांत्रिक साधनाएं ग्रहण काल, होली, दीपावली, संक्रांति, महाशिवरात्रि आदि पर्व मंत्र-तंत्र और यंत्र साधना सिद्धि के लिए उपयुक्त बताए गए हैं, लेकिन इनमें सबसे उपयुक्त पर्व "गुप्त नवरात्र" है। तांत्रिक सिद्धियां गुप्त नवरात्र में ही सिद्ध की जाती हैं।साल में चार नवरात्र होते हैं। इनमें दो मुख्य नवरात्र- चैत्र शुक्ल और अश्विनी शुक्ल में आते हैं और दो गुप्त नवरात्र आषाढ़ शुक्ल और माघ शुक्ल में होते हैं। इनका क्रम इस तरह होता है- पहला मुख्य नवरात्र चैत्र शुक्ल में, फिर गुप्त नवरात्र। दूसरा मुख्य नवरात्र अश्विनी शुक्ल में फिर गुप्त नवरात्र। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें, तो चारों नवरात्रों का संबंध ऋतु परिवर्तन से है। आषाढ़ शुक्ल, 23 जून मंगलवार को गुप्त नवरात्र प्रारंभ हो रहे हैं। मंत्र शास्त्र के अनुसार वेद मंत्रों को ब्राहा ने शक्ति प्रदान की। तांत्रिक प्रयोग को भगवान शिव ने शक्ति संपन्न बनाया है। इसी प्रकार कलियुग में शिव अवतार श्रीशाबर नाथजी ने शाबर मंत्रों को शक्ति प्रदान की। शाबर मंत्र बेजोड़ शब्दों का एक समूह होता है, जो सुनने में अर्थहीन सा प्रतीत होता है। कोई भी मंत्र-तंत्र-यंत्र को सिद्ध करने के लिए गोपनीयता की आवश्यकता होती है। बिना गोपनीयता के कोई भी मंत्र-यंत्र सिद्ध नहीं होता। मंत्र सिद्धि के लिए चार चीजें आवश्यक हैं- (1) एकांत (2) परम शांति (3) एकाग्रता (4) दृढ़ निश्चय। इसके साथ-साथ मंत्रदाता गुरू में पूर्ण श्रद्धा, भक्ति तथा भाव आदि का होना जरू री है। गुप्त नवरात्रा में अधिकतर साधक तंत्र, शाबर मंत्र, योगनी आदि सिद्ध करते हैं, जिन्हें तांत्रिक सिद्धियां कहा जाता है। जो लोग ऎसा करते हैं, उनकी आत्मा शुद्ध नहीं होती है। वे खुद को सिद्ध करने और प्रसिद्धि प्राप्ति की इच्छा से ये सिद्धियां प्राप्त करते हैं। गृहस्थ व्यक्तियों को ऎसी सिद्धियों से दूर रहना ही हितकर है।गृहस्थ व्यक्तियों को अपनी कुंडली में स्थित अरिष्ट ग्रहों की प्रतिकूलता को दूर करने के लिए संबंधित ग्रहों के मंत्रों का जप करना हितकर और उपयोगी रहेगा। इसके अतिरिक्त गणेशजी कष्ट निवारणकर्ता हैं। सूर्य प्राण रक्षक हैं और लक्ष्मीजी आर्थिक सम्पन्नता प्रदान करती हैं। इसलिए गृहस्थ अपने कष्ट निवारण के लिए इनके मंत्रों का जप प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक विधिपूर्वक करें, तो लाभकारी रहेगा।गणेश गायत्री मंत्र- "ú वक्रदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ती प्रचोदयात।"सूर्य उपासना मंत्र- "ú ह्वीं ह्वीं सूर्याय नम:।ú ह्वौं घृणि सूर्य आदित्य श्रीं ú।।लक्ष्मी-गणेश मंत्र- ú श्रीं गं सौम्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।सर्व कार्य सिद्धि यंत्रगुप्त नवरात्रा में भोजपत्र पर अष्टगंध से दो यंत्र को 21 बार लिखें। दो अंक से यंत्र लिखना प्रारंभ करें। नवरात्रा के पश्चात एक यंत्र को अपने दाएं बाजू पर बांध लें तथा दूसरे को बहते पानी में प्रवाहित कर दें। यंत्र पानी में प्रवाहित करने के पश्चात ही पहला यंत्र बाजू में बांधें।सावधानियां: बिना आसन के, चलते-फिरते, सोते हुए, पैर फैलाकर साधना करना निषेध है। मंत्र-यंत्र की सिद्धि के लिए रेशम, कंबल, कुशा या चर्म का आसन श्रेष्ठ होता है। मंत्र जप धीरे-धीरे शुद्ध उच्चारण के साथ करें। जप करते समय सिर व शरीर को न हिलाएं। मंत्रदाता गुरू पर श्रद्धा एवं विश्वास रखते हुए साधना करने पर ही वह फलीभूत होगी।द्वादश राशि मंत्रदेश में करोड़ों व्यक्ति ऎसे होंगे, जिनको अपने जन्म दिनांक एवं समय का ज्ञान नहीं है। ऎसे व्यक्ति अपने बोलते नाम से जो राशि बनती है, उस राशि के मंत्र का जप करके लाभांवित हो सकते हैं। राशि अनुसार मंत्र इस प्रकार हैं-मेष राशि- ú ह्रीं श्रीं लक्ष्मीनारायणाय नम:वृष राशि- ú गोपालाय उत्तर घ्वजाय नम:मिथुन राशि- ú क्लीं कृष्णाय नम:कर्क राशि- ú हिरण्यगर्भाय अव्यक्तरू पिणे नम:सिंह राशि- ú क्लीं ब्राहणे जगदाधाराय नम:कन्या राशि- ú नमो प्रीं पीतांबराय नम:तुला राशि- ú तत्व निरंजनाय तारक रामाय नम:वृश्चिक राशि- ú नारायणाय सुरसिंहाय नम:धनु राशि- ú श्रीं देवकृष्णाय ऊघ्र्वषंताय नम:मकर राशि- ú श्रीं वत्सलाय नम:कुंभ राशि- ú श्रीं उपेन्द्राय अच्युताय नम:मीन राशि- ú क्लौं उद्घृताय उद्धारिणे नम: पं. चांदनारायण पारीक

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