मंगलवार, 22 सितंबर 2009

हथेली की अन्य रेखायें और उनका प्रभाव

1. वासना रेखा
यह रेखा मणिबंध से कनिष्ठा मूल तक ऐसे स्थित होती है कि इससे स्वास्थ्य रेखा का भ्रम होता है। यह कामशक्ति एवं भावना की प्रबलतासूचक है। यह रेखा यदि शुक्रक्षेत्र में चली गयी हो तो, कामतिरेक के कारण जीवन-शक्ति का हृास होता है। इससे जीवन-रेखा का औसत जीवन-मान बदल जाता है। यह रेख बहुत कम हाथांे पर पायी जाती है।
2. अत्ज्र्ञान-रेखा
यह रेखा दार्शनिक या मनोवैज्ञानिक हाथ पर पायी जाती है। यह कनिष्ठा के मूल से तिरछी या अद्धवृत्ताकार मणिबंध के चंद्रक्षेत्र की ओर आती है। यह रेखा बहुत स्पष्ट नहीं होती और बहुत ही कम व्यक्तियों में पायी जाती है। सही रेखा को इसकी धूमिलता ही स्वास्थ्य एवं वासना रेखा से अलग करती है। यह तिरछी अद्धवृत्ताकार होती है।कीरो का कथन है कि ऐसा व्यक्ति अत्यधिक संवदेनशील होता है। उसे पूर्वाभास होता है, वह अतज्र्ञान से प्रकाशित रहता है। चाहे उसका मानसिक या सामाजिक जीवन जिस भी स्तर का हो। वह स्वप्न में भविष्य देखने वाले, अन्तज्र्ञान मंे चेतावनी सुनने वाले होते हैं। कीरो कहते हैं कि विज्ञान इसे संयोग कहता है। किंतु प्रकृति के नियमों में अपवाद नहीं होता। हमें मानना होगा कि प्रकृति में कोई ऐसी शक्ति है, जो प्रत्येक घटना को निश्चित कार्यक्रम पर नियंत्रित करती हैं। ये लोग तीव्र संवेदन शक्ति के कारण उसे समझ लेते हैं।
3. मणिबंध-रेखायें
ये कलाई में होती है।
1. ये तीन होनी चाहिये और सीधी छल्ले की भांति कलाई पर मुड़ी होनी चाहिये। यह जातक के सर्वोत्तम व्यक्तित्व एवं स्वास्थ्य की सबलता की द्योतक है। इसका संकेत आतंरिक उर्जा और मानसिक स्थिति को स्पष्ट करता है। इसके प्रभाव को बाहरी शरीर या व्यक्तित्व को देखकर गलत न समझें।
2. मणिबंध में दो रेखायें या छल्ले हों, तो उपर्युक्त प्रभाव माध्यम एवं एक हो तो निष्कृष्ट होता है। चार छल्ले वाला मणिबंध शायद ही कहीं पाया जाता हो पर यह सबसे उत्तम है।
3. पश्चिम में इस पर आयुविचार भी किया जा सकता है-चार वलय-84 से 100 वर्ष, तीन वलय-68 से 84 वर्ष, दो वलय-46 से 56 वर्ष, एक वलय-23 से 28 वर्ष।
4. यदि मणिबंध रेखायें फैली हुई हांे, एक दूसरे से मिल नहीं रही हों। वे अनेक दिशाओं से जा रही हांे, तो साहस, प्रभाव और उन्नति की द्योतक है।
5. कीरो ने इस रेखा को को कामशक्ति के आकलन की रेखा माना है। यह उफर की ओर चाप बना रही हो ता कामशक्ति का अभाव होता है। इसका मुख्य आधार उफरी वलय की स्थिति है।

4. शुक्र रेखायंे
जो रेखायंे शुक्रक्षेत्र से उठती हैं, उन्हंे शुक्रक्षेत्रीय रेखायंे कहते हैं। मुख्य रेखा पर इनका क्या प्रभाव होता है, ये हम पूर्व मंे ही बता आये हैं। किंतु इस क्षेत्र से कुछ अन्य रेखायंे भी उठती हैें। ये रेखायें निम्न प्रभाव डालती हैं।;कद्ध आड़ी तिरछी- विलासी, चंचल, मनमौजी, सुखभिलाषी।;खद्ध गहरी खड़ी- उत्तम स्मरण-शक्ति।;गद्ध खड़ी पुष्ट गहरी रेखायंे- कठोरता, कृतघ्नता, चतुरता।;घद्ध बाल जैसी महीन रेखायें- मानसिक, शारीरिक परतंत्रता।इससे भी कटिंग, पुष्टता, चिन्ह आदि के प्रभाव परिणाम पूर्ववत् नियमों से होते हैं।
5. गुरु-रेखायें
ये रेखायें गुरूक्षेत्र मंे स्थित होती हैं। प्रभाव एवं फल
1. एक सरल रेखा कड़ी हो और अंगूठे एवं तर्जनी के प्रथम पर्व के उफरी भाग में चक्र का चिन्ह हो, दानशीलता, दयालुता, यशस्विता की द्योतक हैै। चक्र न भी हो, तो भी वह इन गुणों से ही युक्त होता है।
2. दो उपर्युक्त प्रकार की रेखायें हों, तो यह इच्छाशक्ति के दो भागों मे बंटने के संकेत हैं।
3. गुरूक्षेत्र में बहुत सी खड़ी या आड़ी रेखायंे हों, तो जातक दुराचारी होती है। यदि एक खड़ी रेखा तर्जनी एवं अनामिका के मध्य हो तो पेट एवं आंत की बीमारी बनी रहेगी।
4. यदि कोई रेखा गुरू से चलकर सूर्य तक आयी हो, तो यह रोग की परिचायक है। ऐसे हाथ वाला व्यक्ति हमेशा रोगी बना रहेगा। इसके बाद भी यह विद्वता, महत्वाकांक्षा, आध्यात्मिकता आदि की वृद्धि करती है।
5. यदि गुरूक्षेत्र की दो खड़ी रेखाआंे को कोई रेखा काट रही हो तो आध्यात्मिकता, ख्याति, धन, विनम्रता आदि की वृद्धि करती है।
6. तर्जनी मूल में तीन खड़ी छोटी रेखायंे हों, तो जातक शास्त्रज्ञाता, तत्त्वदर्शी और विद्वान होता है।
7. यदि उपर्युक्त रेखायंे तीन हों, तो जातक मिथ्याभाषी, दुष्ट, विषयी, बलवान एवं वातरोगी होता है।
8. यदि इस क्षेत्र में तीन आड़ी रेखा हों और उन्हें कोई रेखा काट रही हो, तो अपयश और हानि की सूचक है।
9. गुरूक्षेत्र पर दो लहरदार रेखायें हों, तो यह दुर्भाग्यकारी है। यह मस्तक-रेखा से भी मिल रही हो, तो दुर्मति की सूचक है।
10. गुरूक्षेत्र की दो टेढ़ी रेखायंे शनिक्षेत्र पर चली गयी हों, तो ये धन एवं सफलता की सूचक है।
11. यदि गुरूक्षेत्र पर सरल स्पष्ट रेख खड़ी हो और हृदय-रेखा गुरू शनि क्षेत्र के बीच से होकर मध्यमा-तर्जनी के बीच में गयी हो, तो यह तत्त्वज्ञान, धर्म, ज्ञान आदि के प्रति रूचि दर्शाती है और जातक की इसमें सफलता और ख्याति प्राप्त होती है।

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