शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

भूमि एवं वास्तु मंडल

भूमि एवं वास्तु मंडल पूजा गृह निर्माण के पश्चात वास्तु-पुरूष की पूजा करते हुए यही कामना की जाती है कि इस आवास में त्रिशक्तियों का वास रहे। लक्ष्मी हमें धन, संपदा व वैभव प्रदान करे। सरस्वती ज्ञान के भंडार खोल दें और पार्वती हमें स्वास्थ्य प्रदान करें। हिंदू धर्म में 56 करोड़ देवी-देवताओं की परिकल्पना व उनका अस्तित्व माना जाता है। इनमें प्रमुख ब्ा्रrाा, विष्णु, महेश व त्रिशक्ति लक्ष्मी, सरस्वती व पार्वती हैं। गृह निर्माण के पश्चात वास्तु-पुरूष की पूजा करते हुए यही कामना की जाती है कि इस आवास में त्रिशक्तियों का वास रहे और वे हमें सुख समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करें। वास्तु-पुरूष मंडल भी अंतरिक्ष में उपलब्ध विभिन्न ऊर्जाओं का प्रतीक है, ऊर्जा का उचित ढंग से गृह में प्रवेश हो यही इसका अभिप्राय है। पंच भूत यथा वायु, अग्नि, भूमि, जल व आकाश तžव का उचित समायोजन घर में हो।जीवन शक्ति प्रदाता सूर्य व इसका प्रभाव।पृथ्वी की आकर्षण शक्ति व चुम्बकीय लहरों का प्रभाव।वास्तुपुरूष मंडल का उचित प्रयोग।गृह निर्माण की प्रक्रिया शुरू होने से लेकर निर्माण संपूर्ण होने के बाद गृह प्रवेश के दौरान शास्त्रों में चार बार पूजा की व्यवस्था है। प्रथम पूजा निर्माण आरम्भ करने पर की जाती है, जिसे शिलान्यास कहा जाता है। इसमें नंदादि पांच शिलाओं का पूजन होता है। दूसरी पूजा देहरी न्यास कहलाती है। द्वार हेतु देहरी रखी जाती है, तब यह पूजा होती है। तीसरी पूजा आवास संपूर्ण होने पर वास्तु मंडल की पूजा की जाती है। इसमें मंत्रोच्चार व बलि विधान द्वारा बुरी आत्माओं को घर से दूर किया जाता है और लाभ प्रदान कराने वाली शक्तियों का आह्वान कर उनकी स्थापना की जाती है। चतुर्थ पूजा के माघ्यम से गृह में प्रवेश किया जाता है। प्राय: तीसरी और चौथी पूजा एक साथ ही संपन्न की जाती है। गृह प्रवेश से पूर्व प्रथम रात्रि को व दूसरे दिन गृह प्रवेश के समय ये पूजाएं की जाती हैं।वास्तु पुरूष मंडल के माघ्यम से प्रतीकात्मक वास्तु पुरूष की पूजा की जाती है। पुरोहित या वास्तु पूजा विशेषज्ञ से ही यह पूजा संपन्न कराई जाती है। इसमें मुख्यत: 81 पदों वाले वास्तु-पुरूष मंडल की रचना चौकी पर की जाती है। कुंकंुम से 10-10 सीधी व आड़ी रेखाओं से 81 पद वास्तु मंडल तैयार किया जाता है। फिर इन 81 कोष्ठकों में देवताओं के अनुसार रंगीन अक्षत भरकर देवताओं की स्थापना की जाती है। बाह्य कोष्ठक में 32 देवता होते हैं, जो क्रमश: अग्नि आदि हैं। मघ्य के 9 स्थान ब्ा्रrाा हेतु सुरक्षित हैं। इसके अलावा 13 देवता भीतर की तरफ होते हैं। वास्तु मंडल की स्थापना कर वास्तु मंत्रों का उच्चारण करते हुए अक्षत, दूर्वा, दही, पुष्प व अन्य पूजन सामग्री से षोडशोपचार पूजन करते हैं और वास्तु पुरूष से इस प्रकार प्रार्थना की जाती है- "हे भूमिरूपी शैय्या पर शयन करने वाले वास्तु पुरूष आपको मेरा शत शत नमन। प्रभु आप मेरे आवास में धनधान्य, विद्या व स्वास्थ्य की निरंतर वृद्धि करते रहें। उपरोक्त मंडल पूजा के बाद गृह प्रवेश पूजा की जाती है।गृह प्रवेश पूजा में आवास को गंगाजल से पवित्र करके फिर वरूण देव की पूजा कर बाहर गणपति स्थापना करते हैं। गृह स्वामी अपने हाथ में प्रज्वलित दीपक लेकर अथर्ववेद में बताई निम्न स्तुति करता है- "हे भव्य भवन मैं आपको देख रहा हूं व आप मुझे देख रहे हैं। मैं आपके भीतर शांतिपूर्वक निवास करना चाहता हूं। आपके अंदर विभिन्न देवताओं के अलावा जल व अग्नि भी स्थित हैं। प्रमुख द्वार से अखिल विश्व में मौजूद विभिन्न सकारात्मक ऊर्जाओं का अपने आप घर में प्रवेश हो रहा है।" यह प्रार्थना कर दीपक सहित घर में प्रवेश करके उस दीपक को मुख्य स्थान पर स्थापित करते हैं। उस जगह पर पहले से चावल, धान, श्वेत पुष्प व सुंगधित अगरबत्ती जलती हुई मौजूद रहे। प्रवेश पश्चात दुर्गाजी की आहुतियां हवन में दी जाती हैं। देवताओं की पूजा-अर्चना कर प्रसाद चढ़ाते हैं। पूरे घर में दुग्ध जल मिश्रित धारा या पानी में चंदन-तेल मिलाकर छिड़काव करते हैं, ताकि रहने वाले सौभाग्यशाली धन-संपन्न व नीरोग रहें। पूजा में प्रयुक्त सामग्री का सीधा संबंध पंच तžवों से है। दीपक अग्नि तžव का, जल व दूध, जल तžव का, अगरबत्ती का धुआं वायु तžव का, फूल व अक्षत पृथ्वी तžव का व पूजा की घंटी व शंखनाद आकाश तžव का प्रतीक हैं। -पं. नंदकिशोर शर्मा

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