मंगलवार, 22 सितंबर 2009

देह भाषा

प्राचीनकाल से ही जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों के साथ-साथ मनुष्य को भी पारस्परिक संवाद कायम करने तथा अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए माध्यम की आवश्यकता चली आ रही है और उसने माध्यम के रूप में अपनाया हाव-भाव तथा संकेतों को। लम्बे समय तक आदिमानव संकेतों के माध्यम से ही परस्पर संवाद कायम करता रहा। धीरे-धीरे मानवजाति के विकास के साथ-साथ ही इस क्षेत्र में भी विकास हुआ और अभिव्यक्ति का माध्यम संकेतों के स्थान पर शाब्दिक भाषा ने ले लिया। अर्थात् परस्पर संवाद हेतु मानवजाति ने शारीरिक भाषा को पार करके शब्दों की अनोखी दुनियां में कदम रख दिया और आज तक शाब्दिक भाषा ही माध्यम बनी हुई है। किंतु इसके मूल में छिपी हुई मूकभाषा ;शारीरिक भाषा का अस्तित्व कदापि समाप्त ना हुआ अपितु प्रचलन कम हो गया और सिर्फ शारिरिक रूप से अक्षम या विकलांग मनुष्यों के लिए शारीरिक भाषा की आवश्यकता और उपयोगिता रह गई। शारीरिक भाषा भावनाओं की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम हो सकती है। जहां हम एक ओर अपने अभिनयपूर्ण जीवन में शब्दों का सहारा लेकर दिखावटी ताना-बाना बुन देते हैं तो वहीं दूसरी ओर हमारी शारीरिक मुद्राएँ और संकेत हमारे मन में छिपे अव्यक्त को भी स्पष्ट रूप से प्रदर्शित कर देते हैं और हम उनसे अनजान बने रह जाते हैं। अर्थात् शब्दों की भाषा के माध्यम से तो सत्य और वास्तविकता को छिपाया जा सकना संभव है, किंतु हमारी शारीरिक मुद्राएं कदापि सत्य को छिपाती नहीं है अपितु अव्यक्त भावनाओं को भी स्पष्टतः सत्यतापूर्वक अभिव्यक्त कर देती है। आवश्यकता है तो बस इस शारीरिक भाषा और इसके संकेतों व मुद्राओं को पहचानने की समझ आप में होनी चाहिए। देह की भाषा पर दुनिया भर में शोध् कर रहे शोधर्थियों ने इसका नाम देह भाषा रख दिया ताकि आम बोलचाल में सहजता के साथ इस शब्द का प्रयोग किया जा सके और वास्तव में संकेतों की इस अद्भुत भाषा को यह नया नामकरण इतना उपयुक्त साबित हुआ कि महज पिछले कुछ वर्षों में ही देह भाषा पूरी दुनिया में प्रचलित हो गई। हाल के कुछ वर्षों में दुनिया भर में इस देह भाषा पर हजारों की तादाद में शोध् पत्र और आलेखों के प्रकाशन के साथ-साथ अनेकानेक भाषाओं में पुस्तकें भी प्रकाशित और प्रसारित हुई हैं। शारीरिक भाषा ;देह भाषा का माध्यम हमारे शारीरिक अंग हैं, जिनको हमारा अद्भुत मस्तिष्क नियंत्रित और संचालित करता है। उफरी तौर पर प्रत्येक व्यक्ति के मस्तिष्कीय तंत्र का स्तर भिन्न-भिन्न होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति की भावनाओं की अभिव्यक्ति के माध्यम में भी स्तरीय असमानताएं पाई जाती हैं। किंतु परोक्ष रूप से तो हमारी भावनाएं देह भाषा के माध्यम से ही प्रदर्शित होती हैं। हमारे मन में गहनतम बिंदु से आने वाली तरंगे भी तो शरीर के स्तर पर किसी संकेत अथवा मुद्रा के माध्यम से ही प्रकट होती हैं। अतएव हर युग में शारीरिक मुद्राएं भाषा की अभिव्यक्ति का सशक्त एवं प्रमाणिक माध्यम साबित हो सकती है। आम तौर से भले ही ‘देह भाषा’ अभी प्रचलन में नहीं हैं, किंतु वर्तमान जीवन के हर कदम पर मिलने वाले धेखे और असत्यता की संभावनाओं के मद्देनजर आने वाले दिनों में फर से शारीरिक भाषा ;देह भाषा का महत्व समझ पाने और इसका वर्चस्व स्थापित होने तथा दैनिक जीवन में संवाद और भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम बन जाने की संभावना से कतई इंकार भी नहीं किया सकता है। आज अत्यध्कि आवश्यकता है कि हम अपने दैनिक जीवन में ‘देह भाषा’ की आवश्यकता, इसका महत्व और इस माध्यम की उपयोगिता समझते हुए इस अद्भुत भाषा को पुनः प्रयोग में लावें और दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे झूठ और धेखे भरे इस दिखावटी जीवन की गहराईयों में जाकर -‘देह भाषा’ के माध्यम से अपने आपको समय से पूर्व ही सुरक्षित एवं सचेत कर सकने की समझ और क्षमता अपने अंदर उत्पन्न कर लेंवें और यह संभव है ‘देह भाषा’ का गहन अध्ययन करके उसके माध्यम से जीवन को सुरक्षित कर सकें। इस पुस्तक में गुरूजी ने अपने जीवन के प्रत्यक्षाप्रत्यक्ष अनुभवों को सचित्रा रूप से सरल भाषा में सहजता के साथ प्रस्तुत करके दैनिक जीवन में प्रचलित सामान्य तथा विशिष्ट शारीरिक मुद्रायें एवं संकेतों को वर्गीकृत करके उनका विवरण प्रस्तुत किया है। प्रत्येक चित्र के साथ प्रदर्शित विवरण से उस शारीरिक मुद्रा को समझने तथा उसका फल जान सकने में सुविध होगी। निरंतर अभ्यास के द्वारा इस अद्भुत विद्या में दक्षता हासिल की जा सकती है।

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